Tuesday, May 11, 2010

ज्ञानदत्त पांडे की साजिश -आग लगा कर छिपने की तैयारी

क्या आपने लोगों को मूर्ख समझ रखा है. प्रश्न उठाया था तो निष्कर्ष आने तक रुकना था, क्यूँ प्रवीण पाण्डे की अतिथि पोस्ट की आड़ में दुम दबा कर छिप गये?


क्या हुआ आपकी इस पोस्ट का निष्कर्ष?

कौन बेहतर ब्लॉगर है शुक्ल या लाल?


छिपने की कोसिश बेकार है. हम चुप नहीं रहेंगे जब तक आप निष्कर्ष नहीं लाते. क्या बेवजह प्रश्न उछालते हो जो जबाब के इन्तजार की जरुरत नहीं. क्या सिर्फ हंगामा खड़ा करना मकसद था या कि लोगों की बदनामी करवाना.

रकारी अधिकारी की ठसक से बाज आओ. जरुरी नहीं कि हर जगह लोग तुम्हारी जी हजुरी करें.

तुम्हारा मकसद सब समझ रहे हैं कि दो लोगों के बीच विवाद करा कर खुद नम्बर एक पर आ जाओ. अंग्रेज बनते हो अंग्रेजी लिख कर और वो ही चालें खेलते हो कि फूट डालो और राज करो.

शर्म आती है आप जैसे लोग सरकार में रह कर उच्च पदासीन है. आपकी सोच को धिक्कार है जो शांति नहीं बने रहने को कार्यरत हैं.

Friday, April 9, 2010

छत्तीसगढ़ वालो जी, यूँ न बिखरो।

कुछ लोग अपनी ताकत के कारण या ताकत बढ़ा कर ताकतवर होते हैं और कुछ लोग दूसरों को कमजोर कर, फूट डाल कर कमजोर बना कर अपनी ताकत को बढ़ाते हैं. ऐसे लोगों से सावधान रहने की जरुरत है. खुद को कमजोर मत होने दो वरना वो कमजोर तुमसे ताकतवर दिखने लगेगा. उसे पहचानों और आपस में मिलजुल कर चलो और उसे करारा जबाब दो.

आजकल ब्लोग पर कम आ रहा हूँ मगर नजर सब तरफ है और सारी बातें समझ रहा हूँ. मैं अपनी पूरी ताकत लगा दूँगा मगर उस गन्दें आदमी की साजिशें कामयाब नहीं होने दूँगा.

उसने आप भाईयों में फूट डाली है, मेरा दावा है कि वो चैन से नहीं रह पायेगा. उसके परिवार में फूट पड़ेगी.

Monday, February 1, 2010

कुश की चिठ्ठाचर्चा : क्या यही नैतिकता है?

आज फालोअप टिप्पनी में यह टिप्पनी प्राप्त हुई जो चिठ्ठाचर्चा पर कही नजर नही आती है| मुझे इसे न छापने का कोई कारण समझ नहीं आ रहा है| क्या नैतिकता और सौहार्द की दुहाई देने वाला चिठ्ठाचर्चा मन्च अपनी तानाशाही नहीं देख पाता?

आप किस मूँह से दूसरों से नैतिकता की आशा करते हैं और इसे लोकमंच कहते हैं?



Suri ने आपकी पोस्ट "मेरी खुराक और चिठ्ठा चर्चा" पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:

@ अनूप शुक्ल

आप शायद समालोचना का अर्थ और महत्व तो भलिभांति जानते होंगे. मैं ने आपकी यह पोस्ट पढी और
आपको कमेंट दिया. पर अफ़्सोस की बात है कि आपने उसे हटा दिया.

मैं पूछना चाहुंगा कि क्युं? मेरी प्रतिक्रिया का गला क्यों घोटा गया? मैने सिर्फ़ यह लिखा था कि
very poor presentation.

इसमें गलत क्या कहा था? मुझे यह फ़िल्मों की फ़ूहडता और अंग्रेजियत झाडती हूई पोस्टर लगी
इसलिये मैनें प्रस्तुतीकरण को सिर्फ़ कमजोर बताया था. इसमे कमेंट डिलिट करने वाली तो कोई
बात ही नही थी.

क्या कमेंट में तारीफ़ वाली टिप्पणीयां ही आप रखते हैं? अगर ऐसा है तो आप आपके ब्लाग को
only for invitees क्युं नही कर लेते? यह सार्वजनिक मंच का ढकोसला क्युं?

टिप्पणी पोस्ट करें.

इस संदेश पर टिप्पणी से सदस्यता समाप्त करें.


Suri द्वारा चिट्ठा चर्चा के लिए February 01, 2010 7:49 PM को पोस्ट किया गया

Sunday, January 3, 2010

मेरी यह टिप्पनी चिठ्ठाचर्चा से अलग की गई है, कृपया बतायें

मेरी यह टिप्पनी चिठ्ठाचर्चा http://chitthacharcha.blogspot.com/2010/01/blog-post_03.html से अलग की गई है. कृपया बतायें कि इसमें ऐसा क्या लिखा है जो इसे अलग करना पड़ा?


राजेश स्वार्थी ने आपकी पोस्ट " ज्ञानविमुख हिन्दी का चिट्ठाकार… " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

सिरफ चिट्ठा चर्चा या चर्चा के अन्य मंच ही क्यों, इस बात को आप सभी ब्लोगों के लिये कह देते। बस कहना ही तो था। सब शटर गिरा कर घर चले जाते। उनके नाम भी गिनवा दिजिये जो हिन्दी की सेवा कर रहे हैं और हिन्दी ब्लोगरी की भी।

क्या मुझे अपनी बात कहने या पुछने का अधिकार नहीं है. न तो मैने किसी पर आछेप लगाया और न ही अस्लील भाषा का इस्तेमाल किया है.

Friday, January 1, 2010

अनुप शुक्ला फुरसतिया, कितने अजीब हो तुम।

लाल अन्ड बवाल पर आपका कमेंट देखा।

अजीब लगा।


अनूप शुक्ल ने कहा…

मगर अलसेट यह हो रही थी कि चित्र अपन से बनते कहाँ हैं ?बस इसको ही पढ़कर आनंदित हो गये। ऐसे शब्द /वाक्य आपके यहां ही सुनने/पढ़ने को मिलते हैं। आप नियमित लिखते रहा करें।

बाकी पहेली के बारे में हम क्या कहें? आप बेहतर समझते हैं। लोग इसी के माध्यम से हिन्दी की सेवा में चिपटे हैं। कुछ कहना उनको हिन्दी सेवा से विरत करने जैसा पाप करना होगा।


आशा यह है कि आप अपनी फुरसतिया पर साल २००९ में प्रकाशित पोस्टें देखें। साल भर में सिवाय ३ या ४ पोस्ट छोड़ कर, केवल इसने ये कहा, उसने वो कहा, झगड़ा लगवाना और रिपोर्टॊं के, आपने लिखा ही क्या है जिसे हिन्दी की सेवा कहा जा सकता है। खुद तो कुछ किया नहीं। जब मौज लेना हो ले लें। दूसरा लोगों के चहेरे पर मुस्कान लाये तो जल भुन जाते हैं। छीः है तुम पर. शायद सब साथ छोड़ गये तो कटख्न्नी बिल्ली हो गये हो।


कितनी साजिश करोगे, अब कलई खुल चुकी है तुम्हारी।


जितना नुकसान आपने हिन्दी के विकास को पहुँचाया है, शायद ही इतिहास माफ कर पाये। सब अब आपको समझ गये हैं। अब तो बस बैठे हुये चिठ्ठा चर्चा पर आई टिप्पणियाँ पोंछने का सफाईकर्मी के काम में लग जओ। वो ही शोभा देता है।