Monday, February 1, 2010

कुश की चिठ्ठाचर्चा : क्या यही नैतिकता है?

आज फालोअप टिप्पनी में यह टिप्पनी प्राप्त हुई जो चिठ्ठाचर्चा पर कही नजर नही आती है| मुझे इसे न छापने का कोई कारण समझ नहीं आ रहा है| क्या नैतिकता और सौहार्द की दुहाई देने वाला चिठ्ठाचर्चा मन्च अपनी तानाशाही नहीं देख पाता?

आप किस मूँह से दूसरों से नैतिकता की आशा करते हैं और इसे लोकमंच कहते हैं?



Suri ने आपकी पोस्ट "मेरी खुराक और चिठ्ठा चर्चा" पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:

@ अनूप शुक्ल

आप शायद समालोचना का अर्थ और महत्व तो भलिभांति जानते होंगे. मैं ने आपकी यह पोस्ट पढी और
आपको कमेंट दिया. पर अफ़्सोस की बात है कि आपने उसे हटा दिया.

मैं पूछना चाहुंगा कि क्युं? मेरी प्रतिक्रिया का गला क्यों घोटा गया? मैने सिर्फ़ यह लिखा था कि
very poor presentation.

इसमें गलत क्या कहा था? मुझे यह फ़िल्मों की फ़ूहडता और अंग्रेजियत झाडती हूई पोस्टर लगी
इसलिये मैनें प्रस्तुतीकरण को सिर्फ़ कमजोर बताया था. इसमे कमेंट डिलिट करने वाली तो कोई
बात ही नही थी.

क्या कमेंट में तारीफ़ वाली टिप्पणीयां ही आप रखते हैं? अगर ऐसा है तो आप आपके ब्लाग को
only for invitees क्युं नही कर लेते? यह सार्वजनिक मंच का ढकोसला क्युं?

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Suri द्वारा चिट्ठा चर्चा के लिए February 01, 2010 7:49 PM को पोस्ट किया गया