Sunday, January 3, 2010

मेरी यह टिप्पनी चिठ्ठाचर्चा से अलग की गई है, कृपया बतायें

मेरी यह टिप्पनी चिठ्ठाचर्चा http://chitthacharcha.blogspot.com/2010/01/blog-post_03.html से अलग की गई है. कृपया बतायें कि इसमें ऐसा क्या लिखा है जो इसे अलग करना पड़ा?


राजेश स्वार्थी ने आपकी पोस्ट " ज्ञानविमुख हिन्दी का चिट्ठाकार… " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

सिरफ चिट्ठा चर्चा या चर्चा के अन्य मंच ही क्यों, इस बात को आप सभी ब्लोगों के लिये कह देते। बस कहना ही तो था। सब शटर गिरा कर घर चले जाते। उनके नाम भी गिनवा दिजिये जो हिन्दी की सेवा कर रहे हैं और हिन्दी ब्लोगरी की भी।

क्या मुझे अपनी बात कहने या पुछने का अधिकार नहीं है. न तो मैने किसी पर आछेप लगाया और न ही अस्लील भाषा का इस्तेमाल किया है.

Friday, January 1, 2010

अनुप शुक्ला फुरसतिया, कितने अजीब हो तुम।

लाल अन्ड बवाल पर आपका कमेंट देखा।

अजीब लगा।


अनूप शुक्ल ने कहा…

मगर अलसेट यह हो रही थी कि चित्र अपन से बनते कहाँ हैं ?बस इसको ही पढ़कर आनंदित हो गये। ऐसे शब्द /वाक्य आपके यहां ही सुनने/पढ़ने को मिलते हैं। आप नियमित लिखते रहा करें।

बाकी पहेली के बारे में हम क्या कहें? आप बेहतर समझते हैं। लोग इसी के माध्यम से हिन्दी की सेवा में चिपटे हैं। कुछ कहना उनको हिन्दी सेवा से विरत करने जैसा पाप करना होगा।


आशा यह है कि आप अपनी फुरसतिया पर साल २००९ में प्रकाशित पोस्टें देखें। साल भर में सिवाय ३ या ४ पोस्ट छोड़ कर, केवल इसने ये कहा, उसने वो कहा, झगड़ा लगवाना और रिपोर्टॊं के, आपने लिखा ही क्या है जिसे हिन्दी की सेवा कहा जा सकता है। खुद तो कुछ किया नहीं। जब मौज लेना हो ले लें। दूसरा लोगों के चहेरे पर मुस्कान लाये तो जल भुन जाते हैं। छीः है तुम पर. शायद सब साथ छोड़ गये तो कटख्न्नी बिल्ली हो गये हो।


कितनी साजिश करोगे, अब कलई खुल चुकी है तुम्हारी।


जितना नुकसान आपने हिन्दी के विकास को पहुँचाया है, शायद ही इतिहास माफ कर पाये। सब अब आपको समझ गये हैं। अब तो बस बैठे हुये चिठ्ठा चर्चा पर आई टिप्पणियाँ पोंछने का सफाईकर्मी के काम में लग जओ। वो ही शोभा देता है।