Friday, January 1, 2010

अनुप शुक्ला फुरसतिया, कितने अजीब हो तुम।

लाल अन्ड बवाल पर आपका कमेंट देखा।

अजीब लगा।


अनूप शुक्ल ने कहा…

मगर अलसेट यह हो रही थी कि चित्र अपन से बनते कहाँ हैं ?बस इसको ही पढ़कर आनंदित हो गये। ऐसे शब्द /वाक्य आपके यहां ही सुनने/पढ़ने को मिलते हैं। आप नियमित लिखते रहा करें।

बाकी पहेली के बारे में हम क्या कहें? आप बेहतर समझते हैं। लोग इसी के माध्यम से हिन्दी की सेवा में चिपटे हैं। कुछ कहना उनको हिन्दी सेवा से विरत करने जैसा पाप करना होगा।


आशा यह है कि आप अपनी फुरसतिया पर साल २००९ में प्रकाशित पोस्टें देखें। साल भर में सिवाय ३ या ४ पोस्ट छोड़ कर, केवल इसने ये कहा, उसने वो कहा, झगड़ा लगवाना और रिपोर्टॊं के, आपने लिखा ही क्या है जिसे हिन्दी की सेवा कहा जा सकता है। खुद तो कुछ किया नहीं। जब मौज लेना हो ले लें। दूसरा लोगों के चहेरे पर मुस्कान लाये तो जल भुन जाते हैं। छीः है तुम पर. शायद सब साथ छोड़ गये तो कटख्न्नी बिल्ली हो गये हो।


कितनी साजिश करोगे, अब कलई खुल चुकी है तुम्हारी।


जितना नुकसान आपने हिन्दी के विकास को पहुँचाया है, शायद ही इतिहास माफ कर पाये। सब अब आपको समझ गये हैं। अब तो बस बैठे हुये चिठ्ठा चर्चा पर आई टिप्पणियाँ पोंछने का सफाईकर्मी के काम में लग जओ। वो ही शोभा देता है।

4 comments:

  1. हिन्दी के विकास.. ha ha ha.. achchha majak kar lete hain.. :)

    ReplyDelete
  2. आदरणीय राजेश जी,
    ऐसी क्या बात हो गई भाई फ़ुरसतिया जी की इस टिप्पणी में ?
    आप नाराज़ हो गए। कोई निहित रहस्य है क्या ? हमें तो उनमें ऐसा कभी कुछ नहीं लगता जी। खै़र।
    मगर क्या हम सबके बीच इतनी घृणा और वितृष्णा मौजूद है ? यदि हाँ तो दुखद है । चलिए हम सब मिलकर अपने प्यारे ब्लॉगजगत से इसे दूर भगा दें। कोई सुन्दर उपाय करें। आप हमारा ज़रूर साथ दीजिएगा।

    ReplyDelete
  3. हाँ दुखद तो है...सुन्दर उपाय करें...

    ReplyDelete

असभ्य भाषा की टिप्पनियां मिटा दी जायेंगी। अपनी बात भाषा की मर्यादा में रह कर करें।